फिजिकल एजुकेशन फाऊंडेशन ऑफ इण्डियां ,उतराखण्ड चैप्टर द्वारा शारीरिक शिक्षा विभाग पतंजली विश्वविद्यालय हरिद्वार व कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनिताल ने संयुक्त रूप से स्वदेशी खेल पर राष्ट्रीय वेबिनार किया आयोजित।
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फिजिकल एजुकेशन फाऊंडेशन ऑफ इण्डियां ,उतराखण्ड चैप्टर द्वारा शारीरिक शिक्षा विभाग पतंजली विश्वविद्यालय हरिद्वार व कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनिताल ने संयुक्त रूप से स्वदेशी खेल पर राष्ट्रीय वेबिनार किया आयोजित।
न्यूज़ टुडे हिमाचल बीयूरो 19 अगस्त:
भारतीय खेल दर्शन द्वारा खेलों में आत्म निर्भर भारत का निर्माण , जिससे आने वाले समय में स्वदेशी खेलों का अपना एक अलग ही वर्चस्व भारत में नजर आएगा। फिजिकल एजुकेशन फाऊंडेशन ऑफ इण्डियां ,उतराखण्ड चैप्टर द्वारा शारीरिक शिक्षा विभाग पतंजली विश्वविद्यालय हरिद्वार व कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनिताल के संयुक्त रूप से स्वदेशी खेल पर राष्ट्रीय वेबिनार किया गया। इस वेबिनार में ड्रॉप रोबॉल खेल के संस्थापक एवं भारतीय क्रीड़ा विकास संगठन के सचिव श्री ईश्वर सिहं आचार्य ने अपने व्याख्यान द्वारा स्वदेशी खेलों के विकास हेतु नारा देते हुए कहा कि भारतीय खेल दर्शन द्वारा स्वदेशी खेलों का भविष्य जल्दी स्वर्ण़ रुप में उभर कर भारत को संपूर्ण विश्व में विख्यात करेगा। स्वदेशी खेलों के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए प्राचीनकाल से लेकर वर्तमानकाल तक स्वदेशी खेल व भारतीय मिश्रित खेलों का अध्ययन करना होगा। आचार्य ने बताया की भारतीय खेल दर्शन वह शारीरिक गतिविधियां जो कई नियमों द्वारा संचालित होने वाली प्रतियोगिता एवं स्वदेशी खेलों का बोध कराएं। खेल जगत में पहली बार भारतीय खेल दर्शन को इस प्रकार से परिभाषित किया है। स्वदेशी खेलों में जहां एक ओर प्रतिस्पर्धा तो है ही साथ में ही जीवन के महत्वपूर्ण संदेश भी छिपे है। देश में 12 वर्ष तक के बच्चों को स्वदेशी खेलों का खेलना अनिवार्य होना चाहिए। इस प्रकार स्वदेशी खेलों के द्वारा स्वस्थ भारत के निर्माण की पहल होगी । भारतीय खेल दर्शन के माध्यम से ही स्वदेशी खेलों के विकास हेतु इस मुहिम को आगे बढाने का बीड़ा उठाया है। जो स्वदेशी खेल गलियों,मौह़ल्लों व खेल मैदानों में खेलें जाते थे। उन खेलों का विकास किया जाए तो खेलों में भी भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। स्वदेशी खेलों के द्वारा गरीब व खेलों से वंचित युवाओं को अधिक लाभ होगा और शिक्षा के साथ जोड़ कर इन्हें केरीयर के रूप में देखा जाए। जिस के द्वारा स्वदेशी खेल भारत में ही नही विश्व भर में एक विशेष पहचान बना पाने में समर्थ होगा। उन्होने रामायण व महाभारत काल में खेले जाने वाले खेलों पर भी चर्चा की औऱ बताया की महाभारत के समय में गेंद यानिके बॉल के साथ खेल खेले जाते थे। भारत बॉल के खेलों का जनक है । भारत में अधिकतर खेल मनोरंजन ,शारीरिक उन्नति व आत्मरक्षा के लिए खेले जाते थे वर्तमान में अधिकतर खेल प्रतियोगिता के रुप में खेलें जाने लगे है। आचार्य ने शारीरिक शिक्षकों ,प्रशिक्षकों, संस्थाएं, उद्यायोगपतिओं एवं सांसदों को आह्वान किया की किसी एक स्वदेशी खेल को गोद ले और उस के विकास में सहयोग करे। हम सभी मिलकर खेलों में भी भारत को आत्मनिर्भर बना सकते है। हिमाचल प्रदेश ड्रॉप रोबॉल संघ कें सचिव गोविन्द सिहं ने झ्स की जानकारी दी।
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