चुनाव के बिना लोकतंत्र की परिकल्पना करना व्यर्थ।
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चुनाव के बिना लोकतंत्र की परिकल्पना करना व्यर्थ।
“चुनाव”
..प्रवीण नेगी.
चुनाव या फिर जिसे निर्वाचन प्रक्रिया के नाम से भी जाना जाता है, लोकतंत्र का एक प्रमुख हिस्सा है और बिना इसके लोकतंत्र की परिकल्पना करना व्यर्थ है l क्योंकि चुनाव का यह विशेष अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक देश के व्यक्ति को यह शक्ति देता है कि वह अपने नेता को स्वेच्छा से चुन सके तथा आवश्यकता पड़ने पर सत्ता परिवर्तन भी कर सके। किसी भी देश के विकास के लिए चुनाव बहुत अहम प्रक्रिया है क्योंकि यह देश के राजनेताओं में इस बात का भय पैदा करता है कि यदि वह जनता का दमन या शोषण करेंगे तो चुनाव के समय जनता अपनी वोटों के ताकत द्वारा उन्हें सत्ता से बाहर कर सकती है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और क्योंकि भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है, इसलिए भारत में चुनावों को काफी अहम माना जाता है। आजादी के बाद से भारत में कई बार चुनाव हो चुके और इन्होंने देश के विकास को गति देने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया। यह चुनाव प्रक्रिया ही है, जिसके कारण भारत में सुशासन, कानून व्यवस्था तथा पारदर्शिता जैसी चीजों को बढ़ावा मिला है।आजकल देखा जा रहा है कि पंचायत चुनाव आ गए हैं और लोग अपने प्रतिनिधि को निर्विरोध चुनाव करके पंचायत भेज रहे हैं, लेकिन यह चुनाव लगातार ऐसा ही चलता रहेगा तो भारतीय लोकतंत्र को खतरा हो सकता है क्योंकि लोकतंत्र की शक्ति इसमें खत्म होती दिख रही है।
क्योंकि लोकतंत्र में लोग अपने मत का इस्तेमाल करके अपने प्रतिनिधि को चुनाव के द्वारा जिताकर के सीट दी जाती है l
इस चुनाव में देखा जा रहा है कि लोग चिठ्ठियाँ डालकर प्रधान और उपप्रधान और अन्य सदस्य बना रहे हैं जो कि एक सही बात नजर नहीं आती ! क्योंकि यहां पर जो लोग काम करने की इच्छा रखते हैं जो समाजसेवी है और जो पढ़े लिखे है, जो लोग गांव का विकास करने की सोच रखते है, उन लोगों को कहीं ना कहीं दूर किया जा रहा है और यह एक बहुत ही गंभीर बात है।
मैं एक आम नागरिक होने के नाते चाहता था कि मैं अपने प्रतिनिधि को अपने मत देकर प्रतिनिधि चुनु । लेकिन यहां पर सब कुछ खत्म होता हुआ दिख रहा है और बिना वोटिंग के प्रधान और सदस्य बन रहे हैं।
.. प्रवीण नेगी।

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