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डेढ करोड़ लागत का आक्सीजन प्लांट बिना टेक्नीशियन साबित हो रहा है सफेद हाथी। होगा।

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डेढ करोड़ लागत का आक्सीजन प्लांट बिना टेक्नीशियन साबित हो रहा है सफेद हाथी। होगा।

कृष्ण रघुवंशी

न्यूज़ टुडे हिमाचल 18 जनवरी अर्की:

उपमंडल अर्की में कोविड आपदा के समय आक्सीजन सिलेंडरों की कमी को देखते हुए प्रदेश व केंद्र सरकार ने प्रदेश में कुछ मुख्य स्थानों पर आक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय लिया था जिसके तहत अर्की अस्पताल में भी लगभग डेढ़ करोड़ की लागत से हजार लिटर प्रति मिनट के आक्सीजन तैयार करने का प्लांट लगाया गया। जिसका शिलान्यास मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश द्वारा किया गया था। परन्तु आज यह आक्सीजन प्लांट रामभरोसे चल रहा है। आदि अस्पताल सूत्रों की माने तो यह प्लांट लगभग तीन माह पूर्व लगाया गया था। तथा जब यह प्लांट लगा तब प्लांट लगाने वाली कम्पनी द्वारा तीन माह के लिए अपना एक व्यक्ति जो टेक्नीशियन की ट्रेनिग भी इसी प्लांट में कर रहा था को प्लांट की देखरेख के लिए नियुक्त किया। परन्तु तीन माह बीतने के पश्चात कम्पनी ने दिसम्बर माह के आखिर में प्लांट में कार्य कर रहे अपने व्यकित को दो टूक कहा कि यदि स्वास्थ्य विभाग या स्थानीय अस्पताल प्रशासन तुम्हारा वेतन वहन कर सकता है तो ठीक है अन्यथा कम्पनी का तुमसे कोई सम्बन्ध नही होगा। जिस पर प्लांट बन्द होने के डर से बीएमओ अर्की जिला सोलन मर सीएमओ कार्यालय में इस समस्या का निदान करने गई तो उन्हें उत्तर मिल की विभाग के पास प्लांट चलाने के लिए किसी व्यक्ति को रखने का कोई आदेश नही है। उन्ही दिनों डीसी सोलन व एसडीएम अर्की अस्पताल आये और उन्हें इस समस्या का पता चला तो उन्होंने प्लांट में कार्यरत कर्मचारी को तीन माह की एक्सटेंशन दे दी ताकि प्लांट चला रहे। परन्तु सोचने योग्य बात यह है। कि जब तीन माह बीत जाएंगे तब इस प्लांट का क्या होगा। क्या यह करोड़ो का प्लांट सफेद हाथी बनकर रह जायेगा। या कोरोना महामारी जड़ से खत्म हो जाएगी या कोरोना या अन्य बीमारियों के चलते सांस की तकलीफ झेलने वाले मरीज ही नही होंगे। हालांकि विभागीय अधिकारी प्लांट चलाने के लिए ट्रेंड किये गए चिकित्सको द्वारा प्लांट चलाने का द्वारा कर सरकार की कमियों पर पर्दा डाल रहे है। लेकिन जो चिकित्सक ओपीडी या मरीजो के लिए है वह तकनीशियन बन कर प्लांट चलाएगा तो मरीजो का क्या होगा। क्या एक चिकित्सक को प्लांट में होने वाली कमियों के बारे में जानकारी होगी। या किसी कारण आक्सीजन का ज्यादा लेबल बढ़ने या घटने से कोई दुर्घटना या जानलेवा हादसा होता है । तो उसका दोषी कौन होगा।क्योंकि प्लांट के बारे में पूर्ण जानकारी केवल प्लांट चलाने वाले मेकेनिक टेक्नीशियन को ही होती है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार के कई इसी प्रकार के निर्णय आगे दौड़ पीछे चोड्ड वाली कहावत को सिद्ध करती हुई दिखाई देती है। लोगो का कहना है कि सरकार को चाहिए की जिन टेक्नीशियन के द्वारा प्लांट अब तक चलाया गया है । उन्हें ही आरकेएस योजना या किसी योजना के तहत रख कर प्लांट चलाने दिया जाए ताकि आम आदमी के द्वारा दिये गए टेक्स से बने यह प्लांट सुचारू कार्य कर सके।
शहजाद आलम एसडीएम अर्की:- कोविड काल चला हुआ है जिसके चलते कार्यरत व्यक्ति को 3 माह की एक्सटेंशन एसडीआरएफ फंड से दी गई है। भविष्य में भी कोरोना की लहर को देखते हुए इसे बढ़ा दिया जाएगा।लेकिन स्वास्थ्य विभाग को चहहिये की प्लांट चलाने के लिए किसी परमानेंट टेक्नीशियन को रखे।

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